कब्बाली भजन
परमपद चलत किये उपदेश, श्रीमद्रामानुज यतिराजा ।। टेर ।।
सुनो श्री वैष्णव समुदाई, गुरुपरंपरा को भाई।
सब पा करो मन लाई, श्री जी वैकुण्ठ मिलन के काजा ।। १
विषयोंसे चित्त निवारो, मन्त्र जप अर्थ विचारो ।
हरिचरण कमल चित धारो, (जी) भवसिन्धु तिरनके काजा ।। २
करूँ भक्त जनोंकी सेवा, जो चारों फलकी देवा ।
सेवाते मिलत है मेवा जी, समझाय कहत फणिराजा ।। ३
जो विधि सब मिलि चलि हो, सियाराम चरण मन धरि हो।
वैकुण्ठ नगर पग धरि हो जी, देवतान बजे हैं बाजा ।। ४